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६४४ ॥ श्री निर्मल शाह जी ॥


पद:-

सेवा सतगुरु कि की क्या खुली नाम धुनि

ध्यान परकाश लय में समाई हुई।

देव मुनि सब मिले साज अनहद सुना सारे असुरों की तन से बिदाई हुई।

हर समय राधिका श्याम सन्मुख लखौं छटा श्रंगार छबि अद्भुत छाई हुई।

गर्भ का कौल इहां पर चुकालो सुनो तब तो जानो हमारी रिहाई हुई।

चेतो चक्कर बड़ा है कठिन मान लो

नाना योनिन में फिर फिर झुलाई हुई।५।

नर्क का दुख बयां कवन यारों करै दुःख की खानि हर दम रुलाई हुई।

जिसका हरि नाम पर प्रेम तन मन लगा

उसके पापों की छिन में धुलाई हुई।

अन्त तन त्यागि निर्मल कहैं यान चढ़ि

राम पुर को गया जग बिदाई हुई।८।