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६२७ ॥ श्री राजेन्द्र सिंह जी राठौर ॥ (२)

सिया राम राधे श्याम रमा बिष्णु कहौ जी।

सतगुरु की बानि मानि कै जब मार्ग गहौ जी।

तन मन से प्रेम होय नित दर्श लहौ जी।

धुनि ध्यान नूर लय मिलै दुख सुक्ख सहौ जी।

सुर मुनि के होंय दर्शन शान्ति दीन रहौ जी।५।

शरम भरम छोड़ि देव अब न बहौ जी।६।

उर में बचन यह धारि लो गर मुक्त चहौ जी।७।

राजेन्द्र कहैं तन को त्यागि फिर न ढहौ जी।८।


दोहा:-

भक्त शिरोमणि होहु तब, कह राजेन्द्र सुनाय।

सतगुरु करि जियतै लखौ, आवागमन नशाय।१।

राजेन्द्र कहैं हर दम भजौ भव दुख होवै नास।

सतगुरु से विधि जानि लो सब समान है पास।२।