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६११ ॥ श्री मल्हना रानी जी ॥


पद:-

शंकर का सुमिरन ओ पूजन, कीन्ह सदा तन मन कर अर्पन।१।

जिनकी कृपा से दुख सब नाशा, अन्त में वास दीन कैलाशा।२।

वहां का सुक्ख बरनि को पावै, हर दम नर नारी हर्षावै।३।

मल्हना कह शिव को भजि लीजै, विनय मानि मेरी सुख कीजै।४।