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६०३ ॥ श्री ठाकुर रघुबर सिंह जी चंदेल॥


दोहा:-

तन मन ते सतगुरु बचन जे न करैं विश्वास।

ते तन तजि रव रव परैं सहैं हर समय त्रास।१।


पद:-

सिया राम नाम जप विधि सतगुरु जिसे बता दें।

विश्वास प्रेम तन मन ते शिष्य गर लगा दें।

धुनि ध्यान नूर लय हो सुधि बुधि तहां भुला दें।

अनहद सुनै बजै घट सारे असुर भगा दें।

सुर मुनि के होंय दर्शन बिधि का लिखा मिटा दें।५।

पितु मातु सामने में अद्भुत छटा को छा दें।

निर्वैर और निर्भय तब किसको वह दगा दें।

तन त्यागि जांय निजपुर हरि अपने रंग बना दें।८।