साईट में खोजें

५५० ॥ श्री तरंग शाह जी ॥


पद:-

चलत टेढ़े टेढ़े धन बल मद ते।

अन्त समय यम दूत उन्है गहि पटकैं महिते भदते।

तन से पकरि निकारि चलैं रोवैं पर पर पद ते।

अबहीं तो चित चेतन नाहीं पाप भार शिर लदते।

तब फिर कवन बचावै उनको परै सामना बद ते।५।

भूख प्यास की बात कहैं जहं मारै मुक्का गद ते।

लै इजलास पै हाजिर कर दें पेशी हो हो रहते।

ग्वाला लाठी डारि टांगी दें नर्क मे दुख बेहदते।

सतगुरु करै जियत हो करतल राम नाम के रद ते।

नाहीं तो उबरे कोई कैसे वाह वाह के नद ते।१०।


चौपाई:-

जीव पान औ पाप है पाला। या से मन का फिरत न माला।१।

कहैं तरगं शाह नर बाला। तन के भय अति बुरे हवाला।२।


दोहा:-

राम नाम के रंग बिन कह तरंग सब भंग।३।

सतगुरु करि सुमिरन करौ जीतौ जग की जंग।४।