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५४६ ॥ श्री प्रेम शाह जी ॥


पद:-

प्रेम प्रेमी को मिलता प्रेम से।

सतगुरु करि सुमिरन विधि जानौ लागौ तन मन प्रेम से।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि करतल होवै प्रेम से।

सुर मुनि मिलैं सुनो घट अनहद पिओ अमी रस प्रेम से।

सन्मुख श्यामा श्याम बिराजैं निरखौ हर दम प्रेम से।

प्रेम शाह कहैं अन्त त्यागि तन निज पुर बैठो प्रेम से।६।