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५३९ ॥ श्री मंगला मुखी जी ॥


पद:-

कन्हैया प्यारो है मेरी जान।

सिर पर मुकुट श्रवण दोऊ कुँडल भाल तिलक चमकान।

नासा अधर चिबुक छवि सुन्दर गालन मारयो मान।

धनुष समान बनी है भृकुटी नैन सैन भरे बान।

भूषन वसन बनत हैं निरखत कहत में रुकत ज़वान।५।

मुरली देत बजाय सुरीली छूटत खान औ पान।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि सब सुख की हैं खान।७।