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५३४ ॥ श्री पंडित आशीरवादी जी ॥


पद:-

सतगुरु करि तन मन ताईला। सो जियतै सब सुख भाईला।

परकास ध्यान लय धाईला। धुनि नाम की खुलि भन्नाईला।

सुर मुनि सब दर्श दिखाईला। अनहद सुनि हिय हर्षाईला।

कुंडलिनी जब जग जाईला। सब लोकन माहिं घुमाईला।

षट चक्कर बेधि घुमाईला। सातौं तब कमल फुलाईला।

सिय राम सामने छाईला। तन तजि सो गर्भ न आईला।६।