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५०२ ॥ श्री चटपट शाह जी ॥


पद:-

वलैयां लें किमि सन्मुख श्याम।

आंखिन अन्धे कानन बहिरे पायो रूप न नाम।

मुरशिद करैं भेद तब पावैं होय सुफ़ल नर चाम।

जेहि दिशि देखैं तेहि दिशि दर्शैं नेक न खाली ठाम।

सूरति शब्द क मारग है यह होत जाप वसु याम।५।

ध्यान प्रकाश समाधी करतल सुर मुनि कहैं गुन ग्राम।

तन तजिकै साकेत विराजैं कौन सकै फिर थाम।

चट पट कहैं भजैं नहिं हरि को ते जन नमक हराम।८।