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५०० ॥ श्री फट फट शाह जी ॥

जारी........

सन्मुख में रूप लेव सूरति को शब्द देव ध्यान लय प्रकाश लेव कैसी

मिली घात जी।८।


पद:-

उछंग में नन्द की हरि राजैं।

पीत झंगुलिया कटि करधनियां पौटा पगन विराजैं।

फूल कलिन रचि केश संवारैं सुर मुनि लखि लखि गांजै।

यशुमति दुइ अंगुलिन लिहे काजल घात करैं दृग आंजै।

हंसि बलराम बजावैं तारी नैन मूंदि प्रभू लाजैं।५।

यह झांकी मुरशिद करि निरखै उनके दुख सब भाजैं।

हर दम नाम पै सूरति राखै नित मुद मंगल छाजै।

ध्यान प्रकाश समाधि को जानै तन मन प्रेम में माजैं।

न हरि सुमिरन बिन भाई आवत नहिं कोई काजै।

फट फट जट शाह कहैं तन तजि कै चलि पितु मातु के बाजैं।१०।

यशुमति को हरि खूब बकावैं।

हंसावैं चिढ़ैं चिढ़ावैं लौटैं मचल दिखावैं।

छिन में कहैं देहु मोहिं माखन छिन में दूध मंगावै।

छिन में कहैं खाब हम साढ़ी छिन में दही मंगावैं।

छिन में कहैं ले आवो खोवा छिन में खुरचन खावैं।५।

छिन में कहैं मलाई पइहौं छिन में रबड़ी पावैं।

छिन में दाल भात वो रोटी छिन में छांछ सुनावैं।

छिन में माल पुवा औ हलुवा खीर को हांक लगावैं।

छिन में पूरी और कचौरी खुरमां कहि गोहरावैं।

छिन में पेड़ा बरफ़ी लड्डू छिन में मिश्री गावैं।१०।

छिन में कलाकन्द औ खाजा बालूशाही ध्यावैं।

छिन में कहैं जिलेवी अमृती रसगुल्ला मन भावै।

छिन में कहै निसास्ता दीजै छिन में गोझिया पावैं।

छिन में रोट पिराक औ माठै कहैं अँदरसा आवैं।

छिन में कहैं गुलगुला मीठे लोन बड़ियां मोहिं भावैं।१५।

छिन में कढ़ी पकौड़ी बोलैं छिन में बरा सुहावैं।

छिन में खारिका और रसा जय छिन में बरी बतावैं।

छिन में सन्तोला औ घेवर छिन में माल दही मंगवावैं।

छिन में सन्देशन हित झगड़ै छिन में घुघुरी हित दोरावैं।

छिन में गट्टा और बताशा छिन में बुंदियन हित चिल्लावैं॥

छिन में गुलाब जामुन औ पापर छिन में चुरमा पपरी खावैं।

छिन में कटवा मटवा मांगैं छिन में भाजी साग सुनावैं।

छिन में कहैं रिकौचैं खइहों छिन में चटनी चाट लगावैं।

छिन में कहैं महेरी रइता छिन में शरबत को घोरवावैं।

छिन में कहैं ले आवो बूरा छिन में कहैं अचारहि खावैं।२५।

छिन में लाई चीउरा मांगैं छिन में बोलैं चना चबावैं।

छिन में निमक मिर्च हित टेरत छिन में अदरख मूलि पावैं।

छिन ही में सब मेवा मांगैं छिन ही में सब फल बतलावैं।

माता परेशान ह्वै बैठीं सखी देंय नेकहु नहिं पावैं।

कहैं हमारे लावो खेलौना माई सब को नाम बतावैं।३०।

नाहीं तो हम पियें न पानी कर मुख की जूठन न धोवावैं।

कहैं बलिराम मान जाव भइया सुनि चट मारन धावैं।

उठि बलराम भाग जांय द्वारे नयन मूंदि मुसक्यावैं।

सखी कहैं आवो मम कनियां हरि दोउ हाथ हिलावैं।

गोप खड़े कर जोरे निरखैं मुख से बोलि न पावैं।३५।

सुर मुनि नभ ते जै जै बोलैं फूलन की झरि लावैं।

भाग्य सराहैं मातु पिता की पुरवासिन बल जावैं।

जिनके सुकृत से हम सब नित प्रित नैनन का फल पावैं।

सर्वेश्वर को जिन वश कीन्हों पल भर नहिं बिलगावैं।

नाना भांति के खेल करैं क्या सब उर प्रेम बढ़ावैं।४०।

जारी........