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४८८ ॥ श्री ठाकुर कामता सिंह जी चौहान ॥


पद:-

संतन का कोई मरम न पावैं।

जहं चाहैं तहं लीला देखैं जहं चाहैं बैकुण्ठ बनावैं।

जहं चाहैं तहं अन्तर होवैं जहं चाहैं तहं दर्श दिखावैं।

जहं चाहैं तहं भोजन करलें जहं चाहैं तहं डाट सुनावैं।

जहं चाहैं तहं हाली पहुँचैं जहं चाहैं तहं देर लगावैं।५।

जहं चाहैं तहं शिक्षा देवैं जहं चाहैं तहं खूब बकावैं।

जहं चाहैं तहं नेक न बोलैं जहं चाहैं तहं हंसि बतलावैं।

जहं चाहैं तहं सेवा करदें जहं चाहैं तहं आप करावैं।

जहं चाहैं तहं मिलैं लपटि कै जहं चाहैं तहं दूरि परावैं।

जहं चाहैं तहं लोटें पोटें जहं चाहैं फौरन उठि जावैं।१०।

जहं चाहैं तहं करैं कीरतन जहं चाहैं तहं ध्यान लगावैं।

जहं चाहैं तहं मूरति पूजैं जहं चाहैं तहं पाठ सुनावैं।

जहं चाहैं तहं सुमिरैं मन में जहं चाहै तहं लय में समावैं।

जहं चाहैं तहं वस्तर लै लें जहं चाहैं तहं देखि हटावैं।

सारे विश्व में राज्य है उनका जहं चाहैं तहं मौज उड़ावैं।

कहैं कामता सिंह सदा हम संतन के चरनन शिर नावैं।१६।