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४८५ ॥ श्री ठाकुर भगौती सिंह जी अहिबन॥


पद:-

ध्यान सतगुरु का प्रथम करि वीर बनना चाहिये।

नाम पर सूरति लगाकर धीर धरना चाहिये।

परकाश लय धुनि ध्यान पा पीर हरना चाहिये।

सुर मुनि मिलैं अनहद सुनो पट चीर रहना चाहिये।

निर्वैर निर्भय जियत ह्वै बन हीर रहना चाहिये।

सन्मुख में माधो राधिका हों तीर रहना चाहिये।६।


शेर:-

अनमोल तन मानुष का पा बेकार काहे खो रहे।१।

चेतो करो सतगुरु इंहा आये करन क्या सो रहे।२।