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४६१ ॥ श्री शैतान शाह जी ॥


पद:-

क्या नील कलेवर श्री हरि का श्रंगार छटा छवि अति प्यारी।

अनुपम झांकी को वरनि सकै फणपति गणपति शारद हारी।

कोई कहता है सीता वर औ कोई कहता धनुधारी।

कोई कहता है राधे वर औ कोई कहता गिरधारी।

कोई कहता है रघुनन्दन औ कोई कहता जग धारी।५।

कोई कहता है यदुनन्दन औ कोई कहता बनवारी।

कोई कहता है सर्वेश्वर कोई कहता मंगल कारी।

कोई कहता है नट नागर कोई कहता लीला धारी।

कोई कहता है रघुकुल मणि कोई कहता मुनि मन हारी।

कोई कहता है मन मोहन कोई कहता चक्कर धारी।१०।

कोई कहता है दीन बन्धु कोई कहता भव भय टारी।

कोई कहता है बृज भूषन कोई कहता है भिखियारी।

कोई कहता है विश्वम्भर कोई कहता संकट हारी।

कोई कहता है दही चोर कोई कहता सब गुण कारी।१५।

मुरशिद करके जप विधि जानो धुनि रग रोवन होवै जारी।

परकाश समाधी ध्यान होय जीतौ जियतै भव की पारी।

अनहद वाजै सुर मुनि गाजैं मिल लेव सबन संग बलिहारी।

सन्मुख हो झांकी राम शियाम छवि जिनकी सब से है न्यारी।

तन मन से जौन ग़रीब बनै सो पावैगा यह सुख भारी।

शैतान शाह कह अन्त वही हरि के ढिग बैठ चुप धारी।२१।