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४५७ ॥ श्री वाले पीर जी ॥


शेर:-

मुरशिद बिना मिलती नहीं रब नाम की बूंटी।

चश्मों में छाया माड़ा गोशों में है खूंटी।

या से नहीं रब लौकता सुनता नहीं धुनी।

परकाश ध्यान लय में चलता नहीं गुनी।

तन मन को इस कूचे में जियत करदे तू फना।५।

हर वक्त मस्त प्यारे तब तो रहा बना।

शैतान तन के जब तक होते नहीं कतल।

कहते हैं वाले पीर तब तक हो नहीं दखल।८।