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४१० ॥ श्री शिव प्यारी माई जी ॥


चौपाई:-

मुक्ति भक्ति प्रेम की नारी। प्रेम करौ होवै सुख भारी।

सन्मुख राजैं प्रिय वनवारी। सुर मुनि मिलैं करैं बलिहारी।

ध्यान समाधि धुनी उजियारी। अनहद सुनो बजै हर वारी।

अमृत पियो भरी घट क्यारी। शुभ औ अशुभ होंय जरि छारी।

सतगुरु करि गुनिये नर नारी। दुर्लभ तन यह लेहु संभारी।५।

शान्ति दीनता ले उर धारी। लागि जाय तब प्रेम की तारी।

जियतै जीति लेव भव पारी। तन तजि बैठो भवन मंझारी।

सब से विनय करैं शिव प्यारी। ना मानै सो रहै दुखारी।८।