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४०३ ॥ श्री पंडित गोपीनाथ जी ॥


पद:-

सतगुरु बिना हरि नाम जप का भेद कोई पाया नहीं।

धुनि ध्यान लय परकाश अनहद साज सुनि पाया नहीं।

देव मुनि संग कीर्तन करि प्रेम उमड़ाया नहीं।

श्याम श्यामा की छटा छवि सामने छाया नहीं।

दीनता औ शान्ति इन्द्री दमन गुन आया नहीं।

कहते हैं गोपी नाथ तन तजि अचल पुर ध्याया नहीं।६।


कीर्तन:-

सिया राम हरे सिया राम हरे सिया राम हरे कहना चाहिये।

प्रिय श्याम हरे प्रिय श्याम हरे प्रिय श्याम हरे कहना चाहिये।

रमा विष्णु हरे रमा विष्णु हरे रमा विष्णु हरे कहना चाहिये।

उमा शम्भू हरे उमा शम्भू हरे उमा शम्भू हरे कहना चाहिये।४।

सिया राम नमो सिया राम नमो सिया राम नमो कहना चाहिये।

प्रिय श्याम नमो प्रिय श्याम नमो प्रिय श्याम नमो कहना चाहिये।

रमा विष्णु नमो रमा विष्णु नमो रमा विष्णु नमो कहना चाहिये।

उमा शम्भु नमो उमा शम्भु नमो उमा शम्भु नमो कहना चाहिये।८।

जय राम सिया जय राम सिया जय राम सिया कहना चाहिये।

जय श्याम प्रिया जय श्याम प्रिया जय श्याम प्रिया कहना चाहिये।

जय विष्णु रमा जय विष्णु रमा जय विष्णु रमा कहना चाहिये।

जय शम्भु उमा जय शम्भु उमा जय शम्भु उमा कहना चाहिये।१२।

श्री राम सिया श्री राम सिया श्री राम सिया कहना चाहिये।

श्री श्याम प्रिया श्री श्याम प्रिया श्री श्याम प्रिया कहना चाहिये।

श्री विष्णु रमा श्री विष्णु रमा श्री विष्णु रमा कहना चाहिये।

श्री शम्भु उमा श्री शम्भु उमा श्री शम्भु उमा कहना चाहिये।१६।