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३७८ ॥ श्री रबी जान रण्डी जी ॥


पद:-

सतगुरु करैं ते नारि नर सुख पाँय दिन पै दिन।

धुनि ध्यान नूर लय में चलि समांय दिन पै दिन।

अमृत पियें अनहद सुनैं चटकांय दिन पै दिन।

सुर मुनि मिलैं लपटि के हँसि बतलांय दिन पै दिन।

नागिन जगै सब चक्र भी भन्नाय दिन पै दिन।५।

फूलैं कमल सुगन्ध मन्द आय दिन पै दिन।

खाना खिलावैं काली जी लाय दिन पै दिन।

जल अति सुगन्ध दार दुर्गा प्यांय दिन पै दिन।

सन्मुख में श्याम श्यामा छवि छांय दिन पै दिन।

तन त्यागि कर जहां में न चकरांय दिन पै दिन।१०।