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३७१ ॥ श्री नक्की शाह जी ॥


पद:-

खोलो राम नाम चटशाला।

सतगुरु करि जप भेद जान लो फेरो मन का माला।

ध्यान धुनी परकाश दसा लय पाय बनों मतवाला।

वेद शास्त्र उपनिषद संहिता औ पुरान क्या आला।

गीता रामायण सुर मुनि नित कहैं करो तो ख्याला।५।

अमृत पियो सुनो घट अनहद उठत मधुर है ताला।

नागिन जगै चक्र सब बेधैं फूलैं कमल विशाला।

इड़ा पिंगला सुखमन होवै होय विहंग की चाला।

सन्मुख आय छटा छवि छावैं प्रिया सहित नन्द लाला।

जियतै पंडित होहु न खंडित मिटै करम गति भाला।१०।

माया असुर भगैं सब तन से मुख निज निज करि काला।

अन्त त्यागि तन अचल धाम लो बनि पितु मातु के लाला।

सूरति शब्द क मारग यह है करि रियाज़ जिन ढाला।

तिनकी गो सारी बध ह्वै गईं भयो सुफ़ल नर छाला।

अजपा जाप हर समय होवै तप धन का भयो टाला।

नक्की शाह कहैं मम बानी सुनि चेतो नर बाला।१६।