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३५९ ॥ श्री रामेश्वरी माई जी ॥


पद:-

अटई डण्डा खेलैं चारिउ भैया।

गुरु वशिष्ठ-दशरथ सब रानी लखि तन मन हर्षैया।

वयसि बराबर के बहु बालक आवैं संग खेलैया।

नर नारी पुर के लखि लखि के प्रेम में पगे सदैया।

राम भरत औ लखन शत्रुहन की झांकी छवि छैया।५।

सुर मुनि चढ़े विमानन निरखैं हँसि हँसि सुमन फेंकैया।

जय जय कार करें दशरथ को धन्य अवध के रैया।

निज निज वाद बजावैं नाचैं आनन्द उर न समैया।

सतगुरु करिकै जानौ जियतै त्यागौ जग औंधैया।

ध्यान धुनी परकाश दशा लय सुधि बुधि जहां भुलैया।१०।

चारौं रूप सामने राजैं चम चम चम चमकैया।

सूरति शब्द का मारग यह है हर दम बजै बधैया।१२।