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३५७ ॥ श्री गङ्गेश्वरी माई जी ॥


पद:-

सतसंगति बिनु मन भयो मोटा। कैसे छूटै पाप लगोंटा।२।

सतगुरु के चरनन जो लोटा। सो गहि पायो नाम क सोंटा।४।

ध्यान-प्रकाश-समाधि में औटा। जन्म मरण के छूटै पौटा।६।

भजन बिना हो श्वान बिलौटा। सहौ दु:ख पावो मल लौटा।८।