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३२५ ॥ श्री दत्त जी ॥


पद:-

बाँकुड़े वीर सो साधू जो मन इन्द्रिन सँभारे हैं।

फौज असुरन कि जो तन में पकड़ि करके पछारे हैं।

ध्यान धुनि नूर लय पा कर रूप सन्मुख मतवारे हैं।

सुनैं अनहद बजै घट में देव मुनि के दुलारे हैं।

नागिनी चक्र औ नीरज सभी सुख से सुधारे हैं।५।

दीनता शान्ति की मूरति सदा गुरु के सहारे हैं।

करैं हरि नाम की चर्चा बचन कोमल उचारे हैं।

दत्त कह अन्त हरिपुर ले फेरि जग पग न धारे हैं।