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३१९ ॥ श्री छनी जान जी ॥


पद:-

सतगुरु करि चलौ गगन मगन ह्वै देखौ राधा माधौ गावत।

सखा सखी संग में सब सोहत उनको भाव बताय सिखावत।

मुरली मधुर बजाय देत जब सुर मुनि सब धुनि सुन हर्षावत।

भांति भांति के सुमन माल है श्याम प्रिया सखा सखिन पिन्हावत।

होय प्रकाश दशालय पहुँचो सुधि बुधि सारी तहां हेरावत।५।

उतरौ सुनौ नाम धुनि प्यारी रग रोवन हर शै से सुनावत।

छनी जान कहैं जियत करै तै सो तन तजि साकेत सिधावत।

नाहीं तो है छूटब मुश्किल बार बार जग में चकरावत।८।