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३०१॥ श्री शुकर शाह जी ॥


पद:-

सनेमा और क्या ठेठर लखौ तन में सदा होती।१।

सीख मुरशिद से लो यारों लगाना उस तरफ़ गोता।

चखौ अमृत मगन हो तब गगन से चल रहा सोता।

ध्यान धुनि नूर लय पाओ होय सुर मुनि के गृह न्योता।

सदा सिय राम सन्मुख हों असुर सारे पकड़ि व्योंता।

करैं खिदमत डरैं तब सब कि जैसे पुत्र औ पोता।६।