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२६५ ॥ श्री श्याम जनी गंगा पुत्रिन जी ॥


पद:-

अपने तन से किसी को दु:ख देना ना मुनासिब है ।

किसी के धन को उस से ठग के लेना नामुनासिब है।

पराई नाजिनी का सँग करना ना मुनासिब है।

अन्न रज तम क सेवन भी समझ लो नामुनासिब है।

तन को सुकुमार कर रखना मानिये ना मुनासिब है।५।

भजन बिन जिन्दगी खोना जान लो ना मुनासिब है।

बिना सतगुरु शरन लीन्हे छूटना ना मुनासिब है।७।