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२६१ ॥ श्री धमाका माई जगइन जी ॥


कजरी:-

हरवा पाप क गले में डारे घूमत गलिन गलिन अठिलात।

जहँ दुर्गन्धि मिलै सूँघन को तहाँ पै चट ठहरात।

चकर मकर सब ओर निहारि के फेरि लगावै घात।

करै कमाई तन मन भाई अन्त नर्क में जात।

छिन सुख हेत सजा जो पावै सो नहिं बरन सेरात।५।

सतगुरु करि गर सुमिरै हरि को सबै पाप कटि जात।

ध्यान धुनी परकाश दशा लय में चलि जावैं मात।

अनहद सुनै देव मुनि दर्शैं रहि रहि पुलकै गात।

सिया राम की झांकी बाँकी सन्मुख में ठहरात।

जियतै मुक्ति भक्ति हों करतल अन्त अचल पुर जात।१०।

कहैं धमाका जगइन जागो काहे धोखा खात।

निज कुल की मर्याद त्यागि हा खरन कि सहते लात।१२।