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२५२ ॥ श्री यदुरी माई कोरिन जी ॥


पद:-

सखियों केहि विधि पहुँचब होय पिया तव दूरि बसैं।

तन मन को पीटत दोय चोर चहुँ ओर हँसै।

सतगुरु करि दुख डारौ धोय चलौ पिय पास लसैं।

सब जहँ के तहँ रहै रोय फेरि हम काहे क खसैं।

लेवै शान्ति दीनता टोय उसे फिरि कौन गसै।

जिन कर्म धर्म दियो खोय वही जग जाल फंसै।६।