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२२५ ॥ श्री ठाकुर बेनी सिंह जी ॥


पद:-

धनि धनि राम श्याम के दास।

सिया राधो प्रिया माधो रहत सन्मुख खास।

सब में समता मधुर बोलैं हरत क्षुधा पियास।

ध्यान धुनि परकाश लय हो जहँ न वारि बताश।

चन्द्र सूर्य कि गम नही जहँ तहाँ पायो वाश।५।

देव मुनि सब देंय आशिष आय बैठैं पास।

गगन ते अमृत झरै सो पिअत बारह मास।

कहत बेनी सिंह जियतै छूटि भव की त्रास।८।