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१९९ ॥ श्री गुनियाँ शाह जी ॥


पद:-

लखु मन हाट घट में लागि।

जाप विधि सतगुरु से जानि के मेटु भव की आगि।

ध्यान धुनि परकाश लय हो जाय सुधि बुधि पागि।

विमल अनहद सुनो बाजै असुर गे तन त्यागि।

चक्र बेधैं कमल उलटैं जाय नागिनि जागि।५।

देव मुनि नित दर्श देवैं कहैं तव बड़ि भागि।

जाय सन्मुख में जुगुल छवि श्याम श्यामा तागि।

शाह गुनियाँ कहैं जियतै लेहु सब फल माँगि।८।