१७७ ॥ श्री वशीर अहमद जी ॥
पद:-
भजु मन नाम करि विश्वास।
पारखी से जाप विधि लै त्यागि जग की आस।
राम नाम कि रमन क्रीड़ा जानि कर दुख नास।
ध्यान धुनि परकाश लय हो कटै भव की त्रास।
राम सीता कृष्ण राधे निरखु सन्मुख खास।५।
देव मुनि सब प्रेम लखि कर आय बैठै पास।
जगै नागिनि चक्र बेधै कमल होय विकाश।
साज अनहद भजै सुनि सुनि होय चित्त हुलास।
गगन ते अनुपम अमी झरि लागि बारह मास।
चखौ बरनन करि सकौ क्या उड़त अजब सुवास।१०।
जियत तै करि सुक्ख लूटौ अन्त लेहु सुपास।
वशीर अहमद कहैं प्रभु के बनौ सच्चे दास।१२।