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१६५ ॥ श्री सौरिया माई जी ॥


पद:-

बधाई अनहद घट में बाजै।

सतगुरु करि सुमिरन विधि जानै तन मन प्रेम में माँजै।

राग रागिनी हरि दरवाजे नाचैं गावैं गाजैं।

तन धरि साज आवरन लीन्हे निज निज ठौर पै राजैं।

ताल तान धुनि स्वर सम होते मुद मंगल तहँ छाजै।५।

सुर मुनि बैठै आनन्द लूटैं नेक पलक नहिं भाँजै।

नर तन पाय जानि नहिं पायो ताको भयो अकाजै।

मैथुन निद्रा वसन औ भूषन शीरीं पय पकवान अनाजै।

और विषय कहँ तक बतलावैं पाप सिंगार को साजै।

अन्त समय जम नर्क में डारैं सीस औटि दृग आँजै।१०।

करि उतान फिरि तन पर चढ़ि कै लातन ते खुब गांजै।

कहैं सौरिया कलपन रोवै जिन छोड़ा कुल काजै।१२।


दोहा:-

राम गरीब निवाज को, भजै जौन सो लाल।

कहैं सौरिया जियत जग, जीतै ठोंकि के ताल॥