१३६ ॥ श्री जगपाल सिंह जी ॥
पद:-
सतगुरु करि नाम में सट सट सट।
उघरैं तब हिय के पट पट पट। चलु ध्यान समाधि में चट चट चट।
ले नूर तिमिर जाय फट फट फट। धुनि हर दम होवै खट खट खट।
सन्मुख निरखौ छवि नट नट नट। परिपूरन जो सब घट घट घट।
जग जाल से जियतै हट हट हट।५।
दोहा:-
दीन बनै सो अटि सकै, मिटै लिखा जो भाल।
नाहीं तो अति कठिन है, अजा क चक्कर चाल।१।