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१३३ ॥ श्री दृग पाल सिंह जी ॥


पद:-

पर ललना को तन मन देना महा पाप का बोना है।१।

कल्पौं दुःख मिलै नाना विधि हर दम वहँ पर रोना है।२।

यह अनमोल शरीर बसर का मुरशिद करि सुख सोना है।३।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि सन्मुख रूप सलोना है।४।