साईट में खोजें

१३१ ॥ श्री लाला हरि बक्स जी ॥


पद:-

चतुर सुघर क्या छैला मोहन अलबेला।

अजब सिंगार बनाये तन में जादू का सुरमा अँखियन में मारत सैन

अकेला मोहन अलबेला।

सन्मुख जौन परै सो मोहै ताको और नहीं कछु सोहै

सब के तन मन पेला मोहन अलबेला।

हाट बाट पनिघट पर घूमै मंद मंद हँसि हंसि झुकि झूमै

चट घट पर दे ढेला मोहन अलबेला।

दूध दही माखन नित लूटै ग्वाल बाल संघ लैकर जूटै

ऊपर ते करै रेला मोहन अलबेला।५।

मुरली जिधर बजावै प्यारी उधरै जाय मिलैं बृज नारी

नाना विधि करै खेला मोहन अलबेला।

रहस भवन में नाचैं गावैं सखा सखिन लै धूम मचावैं

सब जग जाको मेला मोहन अलबेला।

सतगुरु करै लखै नित झांकी जेहि वरणत अहि शारद थाकी

मुक्त भक्त सो चेला मोहन अलबेला।८।


दोहा:-

ध्यान प्रकाश समाधि हो, धुनी सुनै एक तार।

सन्मुख शोभा धाम हों भयो जियति भव पार।१।