साईट में खोजें

११५ ॥ श्री लाला गुरुदयाल जी ॥


पद:-

छरकि झुकि झूमि के नाचै बजावै बाँसुरी थम थम।

पगों के नूपुरों की धुन मधुर कैसी उठै छम छम।

बैठि ऊपर उछरि दौड़े मही से धुनि उठै धम धम।

साज सब संघ में बाजै नाच गति ताल स्वर सम सम।

करौ मुरशिद लखौ सन्मुख मिटै तन मन से सब गम गम।५।

द्वैत कीचड़ में फंस करके अभी तो हौ बने हम हम।

सुरति को शब्द पर धरि के प्रेम करि शान्ति लो नम नम।

ध्यान धुनि नूर लै पावो अंत हरि पुर में हो चम चम।८।