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११३ ॥ श्री दौदा साह जी ॥

जारी........


पद:-

जग में नर तन बरबाद किहे हरि नाम बिना सुख शान्ति कहां।१।

सब सुर मुनि जिनको ध्याय रहे जस वेद पुरानन गाय कहा।२।

सब में हैं रमे सब से न्यारे निर्मान किया जिनका है जहां।३।

कहते हैं दौदा शाह सुनो सोई है तरे जिन शरन गहा।४।


पद:-

जीवन को खुब ढंग से पकड़त दम्भ क पौत्र विकट कलि राजा।

मोह कि नारि नींद को भेजत जा के संग में बहुत समाजा।

माया सरगम गाय रिझावत काम भगावत तन से लाजा।

रती लपटि कै कुगति देत करि केहि विधि करै जीव शुभ काजा।

चारों तरफ़ से घेरे संगी नाना भांति बजावत बाजा।५।

निकसन की कहुँ गैल मिलत नहिं पहरा लागु दसौं दरवाजा।

अन्त समय यम दूत आइकै पकरि उठांय खांय जिमि खाजा।

दौदा कहैं किह्यौ नहिं सतगुरु को तुम्हरी अब सुनै अवाजा।८।


शेर:-

नित्य दरबार में होती बड़ी भक्तों कि है खातिर।

पहुँच सकते वही दौदा कहैं जो नाम में शातिर।१।


पद:-

सतगुरु बिना अंधे व बहिरे नारि नर जग भटकते।

असुरन कि संगति में पड़े तजि अमी विष को गटकते।

धन ठगन हित गाना बजाना सभा में करि चटकते।

सिखि नाचना दोउ कर हिला कटि को झुका कोइ मटकते।

नूपुर बजा मुसक्या झिकोरा दै फ़रश पर छटकते।५।

पय रस औ पानी जहाँ पर मिलि जाय फ़ौरन घटकते।

जा सकैं नहिं शुभ जगह में लखि दूर ही ते सटकते।

कोइ नेम टेम कि बात सुन करि क्रोध कर महि पटकते।

तन त्याग यम पुर में परैं करि हाय हरदम फ़टकते।

जब भोग पूरा जाय ह्वै फिरि आय गर्भ में लटकते।१०।

सुख मानि दुख को लीन है यम काल को वै खटकते।

दौदा कहैं सतगुरु करो हरि को भजो हम हटकते।१२।


पद:-

आचार विचार से भ्रष्ट भये दोनों दिशि ते वे भे उल्लू।१।

चसका विषयों का क्या हर दम जिमि परकी गाय खात गुल्लू।२।

घट ही में अमृत कूप भरा पर पाय नहीं सकते चुल्लू।३।

दौदा कह सतगुरु करि चेतैं मिटि जावै गर्भ केर झुल्लू।४।


दोहा:-

राम नाम जान्यौ नहीं, रहे छूंछ के छूंछ।

उनको ऐसे जानिये ज्यों कूकुर की पूंछ।१।


शेर:-

जीव मन के कहे में पड़ि हुआ अन्धा और बहिरा।

दुःख से हर समय व्याकुल पाप का छा गया कुहिरा।१।

राम का नाम सतगुरु से बिना जाने न कोइ ठहरा।

कहैं दौदा नर्क कल्पों भोगिये चल के अति गहरा।२।