१०९ ॥ श्री गिरिजा दयाल जी ॥
पद:-
रसीली श्याम की चितवन किया तन मन मेरा बस है।
करो मुरशिद चखो अमृत उन्हीं के पास यह रस है।
नहीं तो जन्म जग लेना तुम्हारा मानो वे कस है।
प्रेम में मस्त हो देखो सामने ही रहे हँस हैं।
नाम की धुनि रगन रोवन निकलती हर समै कस है।५।
ध्यान परकाश लै होवै जहाँ रंग रूप नहिं अस है।
जियति अभ्यास करि जीतो कठिन भव ताप की गस है।
अन्त तन छोड़ि हरि पुर लो जहां दोनों में तव जस है।८।