साईट में खोजें

८१ ॥ श्री मधु पुरी जी ॥


पद:-

सतगुरु से लै नाम को ध्यावो। तन मन प्रेम से नेह लगावो।

ध्यान धुनी परकाश पाय लै जियतै भव तरि जावो।

हर दम राधा माधौ सन्मुख निरखि निरखि हरखावो।

अनहद नाद सुनो घट में बाजै सुर मुनि संघ बतलावो।

कुण्डलिनी जाग्रत ह्वै जावै सब लोकन में फिरि आवो।५।

षट चक्कर सोधन ह्वै जावैं सातो कमल फुलावो।

द्वैत क ताग तड़ाक से टूटै शुभ औ अशुभ जरावो।

कहैं मधुपुरी तन जब छूटै सीधे निज पुर जावो।८।


पद:-

क्या श्याम गौर गुल वदन श्याम औ श्यामा।

सतगुरु करि निरखौ हर दम शोभा धामा।

निज काया को मथि लेव जियति आरामा।

तब होय प्रकाश समाधि ध्यान धुनि नामा।

सुर मुनि सब दर्शन देंय आय वसुयामा।५।

फिर रच्छा तुम्हरी करत रहैं हर ठामा।

बाजै क्या अनहद साज घटै में आमा।

सुनि सुनि के हो मन मस्त पुलकिहै जामा।

जगि जाय नागिनी मातु लखौ सब धामा।

षट चक्कर सोधन होंय जौन सुख थामा।१०।

खिलि जावैं सातौं कमल सुनो नर वामा।

सुखमन ह्वै जावै स्वांस सरै सब कामा।

असुरन की सारी फौज होय तब खामा।

करि जतन लेहु जब जानि संग सब सामा।

तन मन जब प्रेम में शनै होय निशकामा।

मधुपुरी कहैं तब पावै अचल मुकामा।१६।