साईट में खोजें

६७ ॥ श्री जलूसी शाह जी ॥


पद:-

अभिमान नेको गर रहैगा तो न आवै दस्त वह।

हर जगह सब में रमा औ कर रहा है गस्त वह।

मुरशिद करै पावै पता बन जायगा तब मस्त वह।

सुमिरन बिना पछितायगा फिर अन्त होगा पस्त वह।

शैतान मारत लै चलै दोज़ख में झेलै कष्ट वह।

कहते जलूसी शाह फिर कल्पों रहेगा अस्त वह।६।


चौपाई:-

निद्रा मैथुन भजन औ भोजन। एकान्त हो सुनिये सब जन।१।

नाहीं तो होवै दुख भारी। जानी सब वह बात हमारी।२।

मुरशिद से जो करिहैं प्रीती। तब पैहैं वह नाम कि रीती।३।

कहैं जलूसी शाह सुनाई। समुझै सो भव से तरि जाई।४।


गज़ल:-

जलूसी कह जलूसी सो जो जलसा हरि का लखि लेवै।

करै मुरशिद गहै मारग मगन सो अमी चखि लेवै।१।

ध्यान धुनि नूर लै पाकर रूप सन्मुख में करि लेवै।

देव मुनि रोज दें दरशन कहैं हरि जस सो सुनि लेवै।२।

जगा कर ब्रह्म की अग्नी कर्म दोनो को धरि देवै।

अन्त तन छोड़ि कर हरि पुर चलै निर्वाण पद लेवै।३।