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६४ ॥ श्री समरस्त शाह जी ॥


पद:-

प्रेम तन मन से करके लगैं जे नहीं

ऐसे सुमिरन से उनको कहाँ फायदा।१।

ध्यान परकाश लै धुनि सुनैं जे नहीं

रूप सन्मुख में हो किमि कहाँ कायदा।२।

दीन बनके जहाँ में रहै जे नहीं

चोर लूटैंगे उनको कहाँ फायदा।३।

बिना मुरशिद के कोई तरैंगे नहीं

देव मुनि सब कहैं यह कहाँ कायदा।४।