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६२ ॥ श्री खुश मिज़ाज़ शाह जी ॥


पद:-

अरे मन बने घूमते तुम तो बानर।

हमै भी बका कर बनाया है कादर।

करूँ मुरशिद ओढ़ूँ मै सुमिरन की चादर।

तुम्हैं भी ओढ़ाऊँ बना कर बिरादर।

लखै सुक्ख अनुपम करै तब तो आदर।५।

ए तन जान लो जैसे पानी क बादर।

करो ऊपरी प्रेम सब से तो सादर।

मगर भीतरी हरि से राखो तरा तर।८।