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५२ ॥ श्री झीनू भक्त जी ॥


दोहा:-

विद्या मद औ रूप मद बल मद धन मद चारि।

भव सागर की धार में पकड़ि देत हैं डारि।१।

राम नाम मद पिये बिन जीव न होवै पार।

झीनू कह सतगुरु वचन मानो हो जयकार।२।