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४५ ॥ श्री नमक हलाल जी ॥


पद:-

अपना अपना खजाना बचाना।

तप धन सम दूसर धन नाहीं जुगुति से इसको छिपाना। अपना०॥

इस तन में बहु चोर बसत हैं लेवैं बांधि बहाना। अपना०॥

हर दम इसी ताक में रहते तानत जाल को ताना। अपना०॥

सतगुरु चरनों में रति रहै फेरो नाम क बाना। अपना०।५।

ध्यान धुनी परकाश दशा लय रूप लखो मस्ताना। अपना०॥

निर्भय सो नित मंगल गावै तन मन प्रेम में साना। अपना०॥

सुर मुनि दर्शन देंय आयकर सब से शीश झुकाना। अपना०॥

अनहद सुनो जाव दरबारे जावै छूटि लुकाना। अपना०॥

षट चक्कर वेधन ह्वै जावैं सातौं कमल खिलाना। अपना०।१०।

जागै मातु नागिनी संग में सब लोकन फिरि आना। अपना०॥

नमक हलाल कहै जो मानै मिलि जाय ठीक ठिकाना। अपना०।१२।