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३५ ॥ श्री विश्राम दास जी ॥


पद:-

देह का अभिमान त्यागो हो फते तब काम जी।

सतगुरु करो लै ध्यान लो परकाश औ धुनि नाम जी।

अनहद बजै घट में सुनो सुर मुनि मिलैं वसु जाम जी।

षट चक्र बेधन होंय सोतों कमल फूलैं आम जी।

नागिनी जगि होय सीधि जोग कीजो थाम जी।५।

सब लोक दिखलावैं तुम्हैं कर दें सुफल नर चाम जी।

हर दम लखौ सन्मुख जुगुल सरकार सीता राम जी।

अन्त तन छूटै अचल पुर लो कहैं विश्राम जी।८।