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३२ ॥ श्री खंभीरा जी ॥


पद:-

मेरे सन्मुख में हरि आय। मुरलिया दीजै नाथ सुनाय॥

कर में हरी हरी दिखलाय। मुरलिया दीजै नाथ सुनाय॥

मो को ग्रह आंगन न स्वहाय। मुरलिया दीजै नाथ सुनाय॥

या मुरली सुर मुनि सब मोह्यौ सब लोकन जश छाय।

मुरलिया दीजै नाथ सुनाय॥

अधर पै धरिकै मधुर मधुर धुनि नैन की सैन चलाय।

मुरलिया दीजै नाथ सुनाय।५।

लचकि छमकि झुकि झूमि प्राण पति मन्द मन्द मुसक्याय।

मुरलिया दीजै नाथ सुनाय॥

कहत खंभीरा दौरि चपटि अब उर में लेहु लगाय।

मुरलिया दीजै नाथ सुनाय॥

सतगुरु करि सब लीला निरखौ तन मन प्रेम लगाय।

मुरलिया दीजै नाथ सुनाय।८।