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२ ॥ श्री राम कुवँरि जी ॥


पद:-

आये क्या करने सो भूले जग जाल में कैसे लटकि गये।१।

पकड़े अपनै नहिं छोड़ि सकै संघ चोरन का करि भटकि गये।२।

सतगुरु करि कितने गहि मारग भव सागर चट पट सटकि गये।३।

तन मन औ प्रेम से हरि न भजौ गहि काल कौर करि गटकि गये।४।


दोहा:-

करैं वृथा बकवाद जे, तिनको समुझौ भृष्ट।

अन्त समै जमपुर बसैं, पावैं नाना कष्ट।१॥

बिन सुमिरन मिटिहै नहीं, चौरासी की चाल।

सतगुरु करि बिधि जान लो, ह्वै जाव माला माल।२।