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४९५ ॥ श्री सलामत शाह जी ॥


पद:-

होय भव पार तब प्राणी मिलै जब नाम का डंका।

ध्यान धुनि नूर लय पावै मिटै तब भाल के अंका।

सामने कृष्ण राधे की रहै झाँकी हो निःशंका।

बड़ा हरि से नहीं कोई करैं छिन राव को रंका।

जियत अभ्यास करि निरखै वही बलवान औ बंका।५।

चेत करके करो सतगुरु नैन चारों को क्यों ढंका।

काल धोके में जब पकड़ै करैगा एक ही फंका।

सलामत शाह कह भाई ये तन जरि जाय जिमि लंका।८।