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४५४ ॥ श्री झब्बू दास जी ॥


पद:-

हरि हर ठौर मंगल करन।

दीन भक्तन पर दया अति मृत्यु जिनकी सरन।

गीध गणिका गज अजामिल सधन लीन्ह्यो सरन।

द्रोपदी की लाज राख्यो बसन बनि दुख हरन।

संकट हरे प्रह्लाद के सब नाहि पायो मरन।५।

ध्रुव को पदवी अचल दीन्ही अब न जग में गिरन।

इन्द्र जी रिसि कीन बृज वर बृष्टि लागे करन।

प्रलय के मेघा जुटे सब जहाँ हरि सुख करन।

बृज के रक्षा हेतु गिरिवर सात दिन नख धरन।

चक्र गिरि पर जाय बैठो सकल जल तहँ जरन।१०।

इन्द्र को मद चूर कीन्ह्यो आय शिर पग धरन।

खड़े ह्वै फिरि हाथ जोड्यो लगे अस्तुति करन।

दया निधि कर पर्सि शिर पर इन्द्र को मन भरन।

अमित पापिन को उबारयो सबै युग सब वरन।

नाम सुमिरन करै हरदम जोरि कै चित चरन।

कहै झब्बू बिनय सुनिये प्रभु तारन तरन।१६।