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४२२ ॥ श्री दाया बाई जी ॥


पद:-

भिखारी दीन हो साँचा उसे यह भीख मिलती है।

भरैं झोरी श्री सतगुरु नेकहू फिर न हिलती है।

ध्यान धुनि लय औ उजियारी छटा सन्मुख में खिलती है।

देव मुनि संग बतलावैं प्रेम वह चख पिघलती है।

तत्व पांचौ चारिहू तन तीनि गुण शोधि चलती है।

कहैं दाया कटै बन्धन न फिर जग में टहलती है।६।