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४०५ ॥ श्री राना बेनी माधौ सिंह ॥

दोहा:-

युद्ध कीन जो कछु बनो फेरि गयन नैपाल।

संतन की संगति भई कीन्ह्यो मोहिं निहाल।१।

अन्त समय हम यान चढ़ि पहुँचेन बिष्णु के धाम।

जा पर संत दया करै ता को पूरन काम।२।

बेनी माधौ कहै यह संत बड़े सामर्थ।

इन ही की संगति करै समय न खोवै व्यर्थ।३।