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३९९ ॥ श्री लाला लाजपति राय जी ॥


गज़ल:-

छोड़ि परस्वार्थ हित तन हम गयन हरि धाम को जानो।१।

चलै साका बहुत दिन जग बड़ी आनन्द वहँ मानो।२।

लाज पति राय की बिनती यह तन पर स्वार्थ में सानो।३।

सहारा एक श्री हरि का समय पर सब बनै ठानो।४।